Hii! It's Yash Chauhan. I try to tell my understanding about world through my poems. I hope u like them. | |
ये प्राण मुक्ति चाहते है
ये प्राण मुक्ति चाहते है ये प्राण मुक्ति मांगते हैं उसके त्रुटियों से भरे शरीर से ये प्राण निकलना चाहते है | जो कोसता है खुदको, जो मारता है खुदको जो बन चुका नशे का भंडार है जो बन चुका पाप का भागीदार है जो मानता खुद को इंसान नहीं जो बन चुका है हैवान वही || उससे ये प्राण मुक्ति चाहते है ये प्राण मुक्ति मांगते हैं उसके त्रुटियों से भरे शरीर से ये प्राण निकलना चाहते है | जो बन चूका है द्वेष व घृणा का घर जो बन चूका है ईर्ष्या का समुंदर जो मानने लगा है खुद को ईश्वर से भी ऊपर जिसके पापों का घड़ा अब चुका है भर || उससे ये प्राण मुक्ति चाहते है ये प्राण मुक्ति मांगते हैं उसके त्रुटियों से भरे शरीर से ये प्राण निकलना चाहते है | जिसके मन में बचा नहीं है अच्छाई का एक अंश जिसके भीतर के इंसान का हो चुका है विधवंश जिसके अंदर जन्म ले रहा है कलयुग का कंस || उससे ये प्राण मुक्ति चाहते है ये प्राण मुक्ति मांगते हैं उसके त्रुटियों से भरे शरीर से ये प्राण निकलना चाहते है |.....
यही हूँ में दिख जाऊगी
अरे क्यूँ कहता की नहीं हूँ में क्यूँ पूछता हे की कहा हूँ में देख तो जरा अगल बगल, यही हूँ में दिख जाऊगी उसमे जो खाना खिला देता हे किसी भूखे कों मिल जाऊगी उसमे जो पानी पीला देता हे किसी प्यासे कों और सुन ऐसा मत कहना की मर गयी हूँ में जरा झांक तो अपने भीतर , तेरे अंदर तो जिन्दा हूँ ना में दिख जाऊगी उसमे जो कर देता हे मदद बिना किसी स्वार्थ के मिल जाऊगी उसमे जो बिना किसी इच्छा के कर रहा हे ईश्वर का नमन और फिर भी तू कहता की नहीं हूँ में पूछता हे की कहा हूँ में देख तो जरा अगल बगल, यही हूँ में